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जानें ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि ब्रह्मा पुत्र “ऋषि अंगिरा” के बारे में

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ऋषि अंगिरा के शिष्य उदयन बड़े प्रतिभाशाली थे, पर अपनी प्रतिभा के स्वतन्त्र प्रदर्शन की उमंग उनमें रहती थी। साथी सहयोगियों से अलग-अपना प्रभाव दिखाने का प्रयास यदा-कदा किया करते थे। ऋषि ने सोचा यह वृत्ति इसे ले डूबेगी…… समय रहते समझना होगा।

सर्दी का दिन था बीच में अंगीठी में कोयले दहक रहे थे, सत्संग चल रहा था। ऋषि बोले कैसी सुन्दर अंगीठी दहक रही है। इसका श्रेय इसमें दहक रहे कोयलों को है न? सभी ने स्वीकार किया।

ऋषि पुनः बोल- देखो, अमुक कोयला सबसे बड़ा-सबसे तेजस्वी है। इसे निकालकर मेरे पास रख दो। ऐसे तेजस्वी का लाभ अधिक निकट से लूँगा।

चिमटे से पकड़कर वह बड़ा तेजस्वी अंगार ऋषि के समीप रख दिया गया।

चर्चा चल पड़ी। -पर यह क्या? अंगार मुर्झा सा गया। उस पर राख की पर्त आ गयी और वह तेजस्वी अंगार काला कोयला भर रह गया।

ऋषि बोले– बच्चों देखा, तुम चाहे जितने तेजस्वी हो, पर इस कोयले जैसी भूल मत कर बैठना। अंगीठी में यह अन्त तक तेजस्वी रहता और सबसे बाद तक गर्मी देता। पर अब न इसका श्रेय रहा- न इसकी प्रतिभा का लाभ हम उठा सके।

शिष्य समझ गये– ऋषि परम्परा वह अंगीठी है जिसमें प्रतिभाऐं संयुक्त रूप से सार्थक होती हैं। व्यक्तिगत प्रतिभा का अहंकार न टिकता है न फलित होता है।

किन ऋषियों की क्या थी महत्ता
ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा के पुत्र थे। उनके पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। ऋग्वेद के अनुसार, ऋषि अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न की थी।
विश्वामित्र : गायत्री मंत्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेदमंत्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं। आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके पुत्र थे। विश्वामित्र की परंपरा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया। यह परंपरा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही।
वशिष्ठ: ऋग्वेद के मंत्रद्रष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक थे। उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्र्मो में उनकी सहभागी थीं।
कश्यप : मारीच ऋषि के पुत्र और आर्य नरेश दक्ष की 13 कन्याओं के पुत्र थे। स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार, इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई।
यमदग्नि : भृगुपुत्र यमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के 16 मंत्रों की रचना की है। केदारखंड के अनुसार, वे आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे।
अत्रि : सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्रि ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि थे। वे चंद्रवंश के प्रवर्तक थे। महर्षि अत्रि आयुर्वेद के आचार्य भी थे।
अपाला : अत्रि एवं अनुसुइया के द्वारा अपाला एवं पुनर्वसु का जन्म हुआ। अपाला द्वारा ऋग्वेद के सूक्त की रचना की गई। पुनर्वसु भी आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य हुए।
नर और नारायण : ऋग्वेद के मंत्र द्रष्टा ये ऋषि धर्म और मातामूर्ति देवी के पुत्र थे। नर और नारायण दोनों भागवत धर्म तथा नारायण धर्म के मूल प्रवर्तक थे।
पराशर : ऋषि वशिष्ठ के पुत्र पराशर कहलाए, जो पिता के साथ हिमालय में वेदमंत्रों के द्रष्टा बने। ये महर्षि व्यास के पिता थे।
भारद्वाज : बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज ने ‘यंत्र सर्वस्व’ नामक ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें विमानों के निर्माण, प्रयोग एवं संचालन के संबंध में विस्तारपूर्वक वर्णन है। ये आयुर्वेद के ऋषि थे तथा धन्वंतरि इनके शिष्य थे।

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