छोड़कर सामग्री पर जाएँ

लुप्त होती मनुष्य की मनुष्यता पर विशेष

इस ख़बर को शेयर करें:

✍ भोलानाथ मिश्र

नुष्य अपने कर्मों से अपनी पहचान खोता जा रहा है और उसकी मुख्य पहचान मनुष्यता लुप्त होती जा रही है जो मनुष्य के भविष्य के लिये शुभ नहीं कहा जा सकता है। हर चींज की पहचान उसके गुणों से होती है और उसके गुण ही उसकी पहचान होते हैं।जिस तरह से आम के पेड़ में आम जामुन के पेड़ जामुन नदी में पानी उसकी पहचान होते हैं उसी तरह मनुष्य की मनुष्यता मानवता उसके मनुष्य होने की पहचान होते हैं।

अगर आम के पेड़ में नीम जैसे लक्षण परिलक्षित हो तो उसे आम नहीं कहा जा सकता है तो उसी तरह यदि मनुष्य में मानव गुण परिलक्षित नहीं होते हैं तो मनुष्य नहीं माना जा.सकता है और वह मनुष्य की खाल ओढ़े भेड़िए के समान है।यहीं कायण है कि कुछ लोग अपने आपको अपने बाप को एशवं अपनी औकात को भूलते जा रहे है और मनुष्य होते हुये भी नरपशु से बदतर स्थिति हैं।

ईश्वर की मनुष्यरूपी रचना सत्यम शिवम सुंदरम एवं अवर्णनीय दया क्षमा शील सदभाव से परिपूर्ण है इसीलिए मनुष्य को ईश्वर का स्वरुप माना जाता है। इतना ही नहीं मनुष्य जब उत्कृष्टता की ओर बढ़ता है तो मानव से महामानव देवमानव बन जाता है और जब मनुष्य में गिरावट आती है तो वह मनुष्य से नर पशु और नर पिशाच बन जाता है। इसीलिए कहा गया कि कभी किसी को अपनी मूल पहचान नहीं खोनी चाहिए क्योंकि एक बार पहचान समाप्त होने के बाद वह दूबारा जल्दी वापस लौटकर नहीं आती है और वापस लाने में बहुत समय लग जाता है।

गणेश मुखी रूद्राक्ष पहने हुए व्यक्ति को मिलती है सभी क्षेत्रों में सफलता एलियन के कंकालों पर मैक्सिको के डॉक्टरों ने किया ये दावा सुबह खाली पेट अमृत है कच्चा लहसुन का सेवन श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में हुआ दर्ज महिला आरक्षण का श्रेय लेने की भाजपा और कांग्रेस में मची होड़