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आखिर क्यों नर्मदा माँ ने हमेशा अविवाहित रहने का प्रण लिया

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भारत में बहने वाली गोदावरी तथा कृष्णा नदी के बाद तीसरे स्थान पर सबसे लम्बी नदी आती है नर्मदा नदी| इस नदी को मध्य प्रदेश का विशेष हिस्सा माना जाता है| यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है| इस नदी की महिमा के बारे में बताया गया है कि नर्मदा के बहने से निकलने वाले प्रत्येक कंकर तथा पत्थर में शिव वास होता है| प्रचलित कथाओं में से एक कथा माँ नर्मदा की है जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे|

तो आइए जानते है नर्मदा माँ के विवाह की कहानी के बारे में:

राजा मैखल की पुत्री नर्मदा को रेवा के नाम से भी जाना जाता है| राजा मैखल ने नर्मदा के विवाह के लिए एक शर्त रखी कि जो राजकुमार गुलबकावली के फूल लेकर मेरी बेटी को देगा उससे इसका विवाह तय कर दिया जाएगा| नर्मदा से शादी करने का मौका सोनभ्रद नाम के एक राजकुमार को मिला जो की नर्मदा के लिए वो पुष्प लाया था|

अब विवाह में कुछ ही समय शेष था और सोनभ्रद से पहले कभी न मिले होने के कारण राजकुमारी नर्मदा ने अपनी दासी जुहिला के हाथ राजकुमार को एक संदेश भेजा| राजकुमारी के वस्त्र और गहने पाकर जुहिला सोनभ्रद को मिलने चली गई| वहां पहुँच कर जुहिला ने राजकुमार को नहीं बताया कि वह दासी है, और उसे राजकुमारी समझ कर सोनभ्रद उस पर मोहित हो गया| काफी समय बीतने के पश्चात जब जुहिला लौट कर ना आई तो राजकुमारी नर्मदा स्वयं सोनभ्रद से मिलने को चली गई| परन्तु वहाँ जाकर उसने देखा कि जुहिला और सोनभ्रद एक दूसरे के साथ थे| यह दृश्य देख नर्मदा क्रोधित हो गई और घृणा से भर उठी| तुरंत वहां से विपरीत दिशा की ओर चल दी और कभी वापिस न आई|

उसके पश्चात से नर्मदा बंगाल सागर की बजाए अरब सागर में जाकर मिल गईं और उन्होंने कसम उठाई कि वे कभी भी विवाह नहीं करेंगी हमेशा कुंवारी ही रहेंगी| आज तक भी सोनभ्रद को अपनी गलती पर पछतावा है परन्तु नर्मदा कभी लौट कर वापिस नहीं आई|

कहा जाता है कि आज भी नर्मदा का विलाप और दुख की पीड़ा आज भी उनके जल की छल-छल की आवाज़ में सुनाई पड़ती है| भारत देश की सभी विशाल नदियां बंगाल सागर में आकर मिलती है किन्तु नर्मदा एक ऐसी नदी है जो बंगाल सागर के बदले अरब सागर की ओर जाकर मिलती है|

नर्मदा नदी की महत्वता:

शास्त्रों के अनुसार नर्मदा नदी गंगा से भी अधिक पवित्र और श्रेष्ट माना गया है| गंगा सपत्मी के दिन माना जाता है कि गंगा माँ स्वयं को पवित्र करने के लिए नर्मदा माँ के पास जाती है| वैसे देखा जाए तो नर्मदा सिर्फ एक नदी स्वरूप है परन्तु भक्तों के दिलों में नर्मदा का दर्जा माँ से भी बढ़कर है| इसलिए भक्तजन माँ नर्मदा को अपने सच्चे हृदय से पूजते है| भारत देश में नदियां केवल बहता हुआ पानी का रूप नहीं बल्कि जीवनदायिनी का स्वरुप होती हैं| नर्मदा में अपार आस्था समाई हुई है| प्राचीन काल से ऋषि मुनियों की तपस्या करने के स्थान के लिए नर्मदा को धार्मिक रूप से श्रेष्ट माना जाता है| पूरे देश में यही एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है| मन में अपार श्रद्धा से सैकड़ों भक्त लगभग तीन हज़ार किलोमीटर की पद यात्रा पूरी करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं|

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