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नक्षत्रों में सबसे पहला है अश्विनी नक्षत्र

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नक्षत्रों में सबसे पहला नक्षत्र (जिसमें तीन तारे होते हैं) एक अप्सरा जो बाद में अश्विनी कुमारों की माता मानी जोने लगी सूर्य पत्नी जो कि घोड़ी के रूप में छिपी हुई थी। सूर्य की पत्नी अश्विनी के यमराज पुत्र। जीवन को व्यवस्थित करने के लिए यदि हम अंतरिक्ष का सहारा लेते हैं, ग्रह-नक्षत्रों पर आश्रित होतें हैं तो इसी परा ज्ञान को ज्योतिष विद्या कहते हैं। मानव शरीर दस अवस्थाओं में विभक्त है भ्रूण शिशु किशोर तरूण गृहस्थ प्रवासी भृतक प्रौढ जरठ एवं मुमूर्षु। इन विभिन्न अवस्थाओं से होता हुआ यही शरीर पूर्णता को प्राप्त होता है। जन्मकाल में ग्रह-गोचर जिस स्थिति में होते हैं वैसा ही फल हमें सारे जीवन भोगना पड़ता है।

अश्विनी नक्षत्र तीन तारों से मिलकर बना है। इसकी आकृति अश्वमुख की भांति है। उत्तर-पूर्व का उल्का तारा हमल है परन्तु अश्विनी नक्षत्र का प्रमुख योग तारा मध्य का बीटा है। प्राचीन काल में बीटा व गामा तारों को अश्वयुज नाम दिया गया था। इन तारों को प्रात:काल पूर्व दिसा में अप्रैल माह के मध्य में उदय होते देखा जा सकता है तथा दिसम्बर माह में रात्रि के नौ बजे से ग्यारह बजे के मध्य ये तारे शिरों बिन्दु पर दिकाई देते हैं। निरयन सूर्य 13-14 अप्रैल को अश्विनी नक्षत्र मनें प्रवेश करता है, सम्पूर्ण अश्विनी नक्षत्र के चरण मेष राशि में होते हैं। अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में रहता है। अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु होता है। इस नक्षत्र में चन्द्रमा के होने से जातक को आभूषण से प्रेम रहता है। जातक सुन्दर तथा सौभाग्यशाली होता है।

विभूषणेत्सुर्मतिमान् शशांके। दक्षस्सरूप सुभगोश्विनीषु।।

अश्विनी नक्षत्र से अश्व द्वारा सवारी, वाहन के रूप में विचार कर सकते है। इस कारण नक्षत्र में वाहन तथा ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय के साथ जोड़ा जाता है। अश्विनी नक्षत्र के मानव जीवन पर निम्न प्रभाव पड़ते है- तन्दुरूस्त शरीर, लाल आंखे, आगे निकले हुए दांत एवं चेहरे पर किसी भी प्रकार के निशान दिखायी देते हैं। अश्विनी नक्षत्र के जातक इष्र्याखोर, शौकीन, निर्मय और स्त्रियों में आसक्त होता है।

नवग्रह- सूर्य चन्द्र मंगल बुध बृहस्पति शुक्र शनि राहु केतु हमारे नियामक है इन्हें मार्ग निर्धारक, प्रेरक, नियोजक, द्रष्टा, विधाता, स्वामी इत्यादि शब्दों में पिरोया जा सकता है। ये ग्रह बारह राशियों में विचरण करते रहते हैं मेष वृष मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु मकर कुम्भ और मीन में तब इनके अपने पृथक् पृथक्, स्वभाव एवं प्रभाव के वशीभूत होकर ग्रह अलग-अलग फल देते हैं।

अश्विनी नक्षत्र में सिर में दर्द, आंख, चमड़ी के दर्द से पीड़ा रहती है एवं सवारी, घुड़सवारी से सम्बन्धित व्यवसाय, ट्रान्सपोर्टेशन, मशीनरी के रूप में कार्य करते हैं। इस नक्षत्र में जन्मी स्त्रियां सुन्दर, धनधान्ययुक्त श्रृंगार में रूचि, मृदुभाषी सहनशील, मनोहर, बुद्धिशाली तथा बड़ों गुरू, माता-पिता और देवी-देवताओं में आस्था रखनेवाली होती है। अश्विनी नक्षत्र जब शुभ ग्रहों से युत या संबन्धित हो तो जातक को शुमत्व प्रदोन करती है इसके विपरीत अशुभ तत्व और तद्संबंधी रोग, बिडम्बना या मुश्किलों का अनुभव कराती है। ऐसे में अधिकतर मस्तक की चोट, मज्जातुंत की बिमारी तथा दिमाग को हानि पहुँचने वाले रोगों में चेचक, मलेरिया तथा कभी-कभी लकवे के योग बनते पाये गये हैं अश्विनी नक्षत्र के जातक सर्वसामान्य एवं रूचिकर होते हैं। इस नक्षत्र का स्वमी ग्रह मंगल है योग, विष्कुभं, जाति-पुरुष, स्वाभाव-शुभ, वर्ण वैश्य तथा विंशोत्तरी दशा अधिपति ग्रह केतु है।

अश्विनी नक्षत्र का गणितीय विस्तार 0 राशि 0 अंश 0 कला से प्रारंभ होकर 0 सराशि 13 अंश 20 कला तक होता है। इस नक्षत्र का रेखांश है। 0 राशि 10 अंश 6 कला से 47 विकला। क्रान्तिवृत से नक्षत्र की दूरी 8 अंश 28 कला 14 विकला उत्तर तथा विषुवत रेखा से 20 अंश 47 कला 36 विकला उत्तर होता है।

ऋृषि कहते हैं कि वस्त्रधारण, उपनयन, क्षौरकर्म, सीमन्त, आभूषण क्रिया, स्थापनादिकर्म, अश्वादि वाहनकर्म, कृषि, विद्या कर्म आदि अश्विनी नक्षत्र में करना शुभद होता है। यह तो स्पष्ट ही है कि अश्विनी नक्षत्र के स्वामी अश्वनीकुमार हैं नाड़ी- आदि, गण-देवता, राशि स्वामी-मंगल, योनि-अश्व, वश्य-चतुष्पद, वर्ण-क्षत्रिय, राशि-मेष तथा अक्षर हैं चू चे चो ला। इस तरह यह सर्वसुखकारक. तारक कारक नक्षत्र है।

इशान कोण से होन वाली घटनाओं या कारणों के लिए किसी भी स्थान में अश्विनी नक्षत्र ग्रहाचार जबाबदार हो सकता है। देश प्रदेश का फलादेश करते समय इशान कोण के प्रदेशों के बारे में अश्विनी नक्षत्र के द्वारा विचार किया जा सकता है।

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