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इतिहास में दर्ज ‘भ्रम पैदा करके, दुश्मनों को मात देने’ की चाल कौन सी थी?

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राजनीति के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकता लेकिन यहां पर चतुराई के बारे में जरुर बताना चाहूँगा ।

कहते हैं इश्क और जंग में सब जायज होता है. कोई नियम नहीं, कोई रोक नहीं. दुश्मन को हराने के लिए या दिल को जीतने के लिए, जो करना पड़े वो कम है. प्यार में हदें पार कर जाने के किस्सों से तो चाहे जब रूबरू होते रहते हैं. किन्तु, आज हम आपको इतिहास के उन दिलचस्प वाक्यों से रू-ब-रू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने कई हारों को जीत में बदल दिया!

अधिकांश देशों की सेनाओं ने भीषण युद्ध में अपने लाखों सैनिक गवाएं हैं. हर देश का इतिहास रक्त से लिखा गया है. रक्त रंजित इन्हीं गाथाओं में से कुछ वो हैं, जिन्हें सैनिकों ने अपनी चतुराई के दम पर जीता. युद्ध के दौरान भ्रम का इस्तेमाल करके दुश्मनों को हार का मुंह देखने पर मजबूर किया गया.

छल की बात आती है, तो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान के सबसे ज्यादा उदाहरण देखने मिलते हैं. इसी दौरान एक युद्ध लड़ा गया था जापान और अमेरिका के बीच. इस दौरान दोनों देशों के सेनाओं ने एक दूसरे के साथ जमकर धोखाधड़ी की थी.

साथ ही जीतने के लिए चालाकी का सहारा लिया. एक घटना के अनुसार जापानी सेना ने खेतों और खाली मैदानों में नकली बमवर्षक विमान के मॉडल बनाकर रख दिए. ये मॉडल बांस से बनाएं गए थे और इस पर असली घास डाल दी गई.

ऐसे कई छोटे-छोटे ठिकाने बनाएं गए. अमेरिका की वायु सेना यह सोचकर इन ठिकानों पर बम गिराती गई कि यह जापानी सेना का सैन्य अड्डा है. नतीजा यह हुआ कि जहां जरूरत होती वहां पर पहुंचने तक अमेरिका के विमान खाली हो जाते.

दूसरी चाल यह थी कि खाली एयर फील्ड की जमीन पर अमेरिकी बी-29 विमान का बड़ा सा चित्र पेंट कर दिया. इसे ऐसे पेंट किया गया था कि आसमान से देखने पर लगता था, जैसे टैंक के इंजन में आग लगी है.

नतीजा यह हुआ कि अमेरिकी बमवर्षकों को लगता रहा कि उनके किसी विमान के साथ कोई दुर्घटना हो गई है. वे जांच के लिए नीचे आते और तभी जापानी सेना उन पर धावा बोल देती.जहां जापानी सेना अपनी चाल चल रही थी, वहां अमेरिका भले कैसे पीछे रहता? जापनियों से सबक लेते हुए अमेरिका ने भी कदम उठाया. अमेरिकी सेना के 23rd विशेष सैनिक मुख्यालय ने एक योजना तैयार की.

इसके लिए तोप और हवाई दस्ते के जैसे गुब्बारे तैयार करवाए गए. रेडियो ट्रांसमिशन बनाया गया. सैनिकों का शोर रिकॉर्ड किया गया और फिर इस पूरी तैयारी को एक मैदान में स्थापित कर दिया गया.

ताकि, जापानी सैनिकों को उक्त स्थान में युद्ध होने का भ्रम हो.

यानि आर्मी थी नहीं, केवल उसके होने का भ्रम पैदा किया गया. अमेरिकियों की यह चाल जापानी सैनिक समझ नहीं पाए. वे सैनिक दस्ता होने के भ्रम में खाली मैदानों में बम गिराते गए और इस तरह लाखों आम नागरिकों और सैनिकों की जानें बच गईं.

आर्मी के इस छदम रूप को इतिहास में ‘घोस्ट आर्मी‘ कहा गया.

दूसरे विश्व युद्ध में घटित ‘ऑपरेशन स्टारफिश‘ के बारे में कई किस्से मशहूर हुए हैं. लेकिन इस आॅपरेशन का सबसे दिलचस्प हिस्सा था सैनिकों का धोखा. जिसके जरिए ब्रिटिश सेना ने दुश्मनों की नजर से अपने कई शहरों और गांवों को बचा लिया. आॅपरेशन स्टार फिश के तहत साउथ सिटी फिल्म स्टूडियो का जमकर इस्तेमाल किया गया.

फिल्म सिटी में नकली टैंक, तोप, गोला, बारूद तैयार किया गया. ईमारतें और मुख्यालयों के सेट तैयार किए गए. इन सभी को फिल्म सिटी में अलग-अलग स्थानों पर कुछ इस प्रकार जमाया गया जिससे देखने वाले को लगे कि यह देश का मुख्य शहर है.

सेट तैयार करने वाले कलाकारों ने हवाई अड्डे, पानी के जहाज और ऐसी नकली गाडियां तैयार की थीं, ​जो दिखने में बिल्कुल असल लगते थे. खासतौर पर वायुसेना के लिए जमीन पर इन्हें पहचान पाना नामुमकिन था.

जैसे ही आसमान में दुश्मन सेना के विमान तैरते दिखाई देते, कलाकार अपने ही सेट में आग लगा देते. दुश्मनों को लगता कि यहां तो पहले से जंग चल रही है, इसलिए वे वहां गोला बारूद बर्बाद करने की बजाय आगे चले जाते.

कहा जाता है कि नकली शहरों ने देश के असली शहरों को बर्बाद होने से बचा लिया.

सैनिकों की बुद्धिमत्ता की बात हो और भारतीय सेना का जि​क्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है? सैनिकों की दिमागी करामात का सबसे अच्छा उदाहरण है भारत-पाकिस्तान 1971 के युद्ध का. इस दौरान भारतीय नौ सेना ने पाकिस्तानी सेना को पानी के युद्ध में हार का मुंह दिखाया था. वह भी तब जबकि पाकिस्तानी नौ सेना भारतीय सेना से ज्यादा ताकतवर थी.

यह युद्ध नौ सेना ने अपनी ताकत से ज्यादा दिमाग से जीता था. दरअसल लड़ाई में कराची पर बमवर्षा करते हुए भारतीय नेवी मिसाइल बोट्स आपस में रशियन भाषा में संवाद कर रहे थे.

होता यह था कि पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना के संवाद को पकड़ तो लेती थी, पर समझ नहीं पाती थी. पाकिस्तानी सेना को लगता था कि यह सिग्नल सुदूर अरब सागर में रशियन नेवी का है, जो अमेरिकी सेना के खिलाफ रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं.

इसके अलावा इंडियन आर्मी ने जगह जगह पर दक्षिण भारतीय रेडियो ट्रांसमिशन स्टाफ की पोस्टिंग की. दक्षिण भारतीय भाषाओं में सैनिकों का संवाद पाकिस्तानी सेना के समझ में नहीं आता था. नतीजतन भारतीय सेना आसानी से अपने दुश्मनों के ठिकाने तबाह करती रही.

वैसे भारतीय सेना के लिए भ्रम पैदा करना और दुश्मनों को मात देना कोई नया प्रयोग नहीं था. इस विद्या का प्रयोग मराठा सेनाओं ने खूब किया. शिवाजी ने शाइस्ताखान के खिलाफ युद्ध में एक विशेष युक्ति अपनाई थी. उन्होंने रात में बैलों और साड़ों की सींगो में मशालें बांधकर छोड़ दिया था. जिससे दुश्मनों को मराठाओं की भारी सेना होना का भ्रम हुआ.

बीजापुर और क़ुतुब शाही की लड़ाई के दौरान मराठे छोटे छोटे ग्रुप में पहाड़ों में अलग अलग तरफ से आक्रमण करते थे. जिससे दुश्मनों को लगता था कि मराठाओं की भारी सेना ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया है.

मराठाओं से दो कदम आगे बढ़कर मेवाड़ के सैनिकों ने कारनामा कर दिखाया था. वे अपने घोड़ों पर छोटे हाथियों की सी सूंड और छद्मावरण पहना दिया करते थे, जिससे युद्ध में विरोधी सेना के घोड़े उन्हें छोटे हाथी समझ कर डरकर बिदक जाया करते थे. महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में सबसे पहले यह प्रयोग किया था.

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