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अजनबी और उसका विश्वास

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आशुतोष राणा

ता नही वो कहा से आया था ? और उसे भी नहीं पता था कि वो कहाँ पहुँच चुका था ? जिस जगह वो पहुँचा था वो जगह उसके लिए बिलकुल अनजान थी। उसने देखा की उस अनजान जगह पर लोग तो रहते हैं, लेकिन बिखरे हुए हैं, और वे भी एक दूसरे से अनजान हैं.. उसे आश्चर्य हुआ की एक ही जगह पर रहने वाले लोग, एक दूसरे को जानते भी नहीं हैं ? शायद उनका एक दूसरे को ना जानना ही उनके इस बिखराव का कारण हो ?

उसके मन में तभी एक विचार उत्पन्न हुआ- इस अनजान जगह के अनजान लोग एक दूसरे से अनजाने क्यों हैं ? क्या ये एक दूसरे को जानना ही नही चाहते ?

उसने एक-एक करके उस अनजान जगह के अनजान लोगों से मिलना शुरू किया- उसे फिर घोर आश्चर्य हुआ की ये लोग उस अपरिचित से तो बहुत आत्मीयता और विश्वास से मिल रहे हैं किंतु एक ही जगह रहने वाले लोगों से रिश्ता बनाने में उनकी रुचि नहीं है।

तभी उसके मन में कोई बोला- यहाँ सवाल रुचि का नहीं भय का है। ये एक दूसरे से अनजान नहीं है, बल्कि एक दूसरे को जानते हैं।

उस व्यक्ति ने अपने मन से कहा- कमाल की बात करते हो !! जब इनका आपस में परिचय है तो भय किस बात का ? भय तो अपरिचय में होता है।

उसके मन ने हँसते हुए कहा- भय परिचय में ही वास करता है, और उसका कारण होता है आपसी अविश्वास, कम मिलने से विश्वास बढ़ता है और अधिक मिलने से अविश्वास में वृद्धि होती है। और वही भयानक भय को पैदा करता है और यही भय बिखराव का कारण बन जाता है।

उस व्यक्ति ने अपने मन को जवाब देते हुए कहा- इसका मतलब है की समस्या भय की नहीं विश्वास की है ? मैं इनके बीच के अविश्वास को समाप्त कर दूँगा मुझे इस बात का विश्वास है।

मन ने सचेत करते हुए कहा- तुम भूल कर रहे हो, देखना ये एक दिन तुम्हारे विश्वास की नहीं तुम्हारी भी हत्या कर देंगे। क्योंकि ये अविश्वास को ही विश्वास मानते हैं।

उस अजनबी व्यक्ति ने अपने मन से कहा- नहीं विश्वास में बहुत ताक़त होती जब किसी को सम्मानपूर्वक विश्वास दिया जाता है तो यह जड़ को भी चेतन कर देता है, फिर तो ये भले लोग हैं।

उसके मन ने हँसते हुए कहा- तुम नहीं मानोगे ? ठीक है प्रयास करके देखलो।

उस अनजान व्यक्ति ने उस अनजान भूमि पर एक घर बनाया जिसका नाम विश्वास भवन रखा, वो एक एक करके उन बिखरे हुए लोगों को अपने घर में इकट्ठा करने लगा.. वे सभी जो अभी तक अविश्वास और भय के कारण बिखरे हुए थे उस व्यक्ति के विश्वास के कारण एक होने लगे उनके बीच घोर विश्वास पैदा हो गया, वे बिखेर लोग उस अपरिचित का धन्यवाद देते उसे मान सम्मान देते।

अपरिचित अपने इस उद्यम से प्रसन्न होकर सदैव अपने मन से कहता- देखा मैं ना कहता था की विश्वास में शक्ति होती है, मुझे पूरे संसार से अविश्वास को मिटाना है, बस तुम मेरा साथ ना छोड़ना। मन चुपचाप उसकी बात सुनता रहता।

फिर एक भीषण रात वे सभी बिखरे लोग अचानक अपरिचित के बनाए घर में कोलाहल करने लगे, उन्होंने अपरिचित को घेर लिया और वे सभी कहने लगे की हम सब तो एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानते हैं, एक दूसरे से प्रेम करते हैं, एक दूसरे पर विश्वास करते हैं लेकिन ये व्यक्ति कौन है ? कहाँ से आया है ? हम इसके बारे में बिलकुल भी नहीं जानते.. इसको ना जानना, इसको ना समझ पाना हमारे अंदर भय पैदा करता है, हम इससे भयभीत रहते हैं, ये व्यक्ति हमारे अविश्वास का केंद्र है इसका हम विश्वसनीयों के बीच रहना हमारे संकट का कारण हो सकता है।

और वे सभी उसपर टूट पड़े, यह व्यक्ति कमज़ोर नहीं है उसके पास विश्वास की शक्ति है इस बात को उस घर में रहने वाले बिखरे लोग जानते थे तो उन्होंने फ़ैसला किया की सबसे पहले इस व्यक्ति के विश्वास को खंडित किया जाए, विश्वास के खंडित होते ही ये स्वमेव नष्ट हो जाएगा।

और हुआ वही, उन्होंने उस अपरिचित को हत करने की हद तक कुचला और उसे एक अंधेरी अपरिचित गुफा में मृत मानकर छोड़ गए।

उस अर्धमृत व्यक्ति के पास अब कोई नहीं था अगर कुछ था तो उस काली गुफा का गहन अंधकार, खंडित टूटा हुआ उसका विश्वास और उसका मन जो उसकी कराह को ध्यान से सुन रहा था।

यह लेख फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा के फेसबुक पेज से लिया गया है 

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