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भारत में केंद्र शासित प्रदेशों का विलय न होने का कारण

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इस समय भारत में 7 केंद्रीय शासित प्रदेश हैं.

  1. दिल्ली
  2. चंडीगढ़
  3. दमन और दिऊ
  4. अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह
  5. पुदुचेरी (पोंडिचेरी)
  6. दादरा और नागर हवेली
  7. लक्षद्वीप

चंडीगढ़

1966 में जब हरयाणा राज्य बना तब चंडीगढ़ शहर को कुछ समय के लिए सामूहिक राजधानी की तरह उपयोग किया जाना था. मूलतः चंडीगढ़ को पंजाब को दिया जाना था और उस के बदले पंजाब का कुछ हिन्दू बहुमत वाला इलाका हरयाणा को जान था और हरयाणा का कुछ सिख बहुमत वाला इलाका पंजाब को. पर यह मुद्दा हल नहीं हो पाया. इसकी वजह मुख्यतः यह रही की दोनों राज्यों में से कोई भी चंडीगढ़, जो की बहुत अच्छी तरह आयोजित है और राज्य को सब से ज़्यादा राजस्व प्रदान करता है, को अपने हाथों से नहीं जाने देना चाहता था. इस मुद्दे का निवारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जाना था पर यह भी नहीं हो सका.

अब तो यह मुद्दा तभी सुलझ सकता है जब पंजाब और हरयाणा की सरकारें आपसी सहयोग से इसका हल निकालें. इसका एक उपाय हो सकता है की जब तक दूसरा राज्य अपनी अलग राजधानी का निर्माण नहीं कर लेता तब तक चंडीगढ़ में दोनों राज्यों की सरकारें बैठें. जैसे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच हो रहा है. हालाँकि यहाँ भी हैदराबाद को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने की बात उठी थी पर उसे नकार दिया गया.

दिल्ली

दिल्ली को अलग राज्य नहीं बनाये जाने के कई कारण हैं, जिनमे से 2 मुख्य हैं.

पहला की यह एक राजधानी क्षेत्र है और इसी वजह से केंद्रीय शासन से अलग नहीं हो सकता. केंद्र सरकार यहीं मौजूद है. दुनिया के ज़्यादातर बड़े देशों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कभी राज्य के पास नहीं होता.

दूसरा है सुरक्षा. केंद्र व राज्य सरकार के प्रशासनिक अंग दिल्ली में स्तिथित हैं. उस के अलावा दिल्ली में विदेशी राजनयिक, राजनेता, राज्यों के प्रधान इत्यादि आते रहते हैं. उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार को नहीं दी जा सकती.

लक्षद्वीप और अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह

लक्षद्वीप और अंडमान मुख्य ज़मीन से बहुत दूर हैं. भौगोलिक रूप से इनका अपने निकटतम राज्य से समाकलन मुश्किल भी है.

दूसरा कारण है की इनकी एक अलग पहचान है. इनको अगर केरल और तमिल नाडू के साथ मिलाया भी गया तो इनकी अलग पहचान खो जाएगी. अलग राज्य बनाने के हिसाब से भी ये बहुत छोटे हैं. इन्हें केंद्र द्वारा शासित किया जाता है क्यूंकि यहाँ पर जनसँख्या बहुत कम है. इन दोनों ही प्रदेशों के पास नगरपालिका तंत्र है जिसमें केंद्र सरकार ज़्यादा दखल नहीं देती जिस वजह से ये प्रदेश अपनी स्वायत्‍तता का आनंद भी उठाते हैं.

दमन और दिऊ, और दादरा और नागर हवेली

दमन, दिऊ, दादरा और नागर हवेली पहले पुर्तगाली कॉलोनियां थीं. ये सांस्कृतिक रूप से भी राज्यों से अलग हैं इन्हीं वजहों से इन्हें अलग रखा गया है ताकि इनकी संस्कृति सुरक्षित रखी जा सके. यहाँ पर भी नगरपालिका तंत्र है और अच्छे से चलाया जा रहा है. पड़ोसी राज्यों में विलय करने पर इनको कोई ज़्यादा फायदा नहीं होगा.

यही वजह पुदुचेरी (पोंडिचेरी) पर भी लागू होती हैं. पुदुचेरी (पोंडिचेरी) फ्रांस की कॉलोनी थी. यहाँ की संस्कृति अंग्रेजो द्वारा शासित राज्यों से अलग है. उसी को बचाने और सुरक्षित रखने की वजह से इसे तमिल नाडू में नहीं मिलाया गया है.

मैं चंडीगढ़ को छोड़ कर बाकि केंद्र शासित प्रदेशों के अलग ही रहने के पक्ष में हूँ. ये प्रदेश अच्छे से काम कर रहे हैं और अपनी सांस्कृतिक अंतर को भी संजोये हुए हैं. निकटतम राज्यों में इनका विलय होना कोई फायदेमंद नहीं होगा

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