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भारतीय इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित राजनीतिक भाषण कौन सा है?

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16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार देश के पीएम बने। उनकी सरकार सिर्फ 13 दिन में ही गिर गई थी। 28 मई 1996 में उन्होंने लोकसभा में विश्वास मत पेश किया जो गिर गया। इस प्रस्ताव पर चर्चा के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने जो भाषण दिया वह उस दौरान उन्होंने मार्मिक भाषण दिया था जिसे लोग आज भी याद करते हैं।

बतौर पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में जो भाषण दिया वह उनकी सरकार के विश्वास मत पर चर्चा के लिए था। उनके भाषण के कुछ अंश यहाँ देखें वीडियो

कभी नहीं सोचा था कि मैं एमपी बनूं
‘जब मैं राजनीति में आया, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एमपी बनूं। मैं पत्रकार था आैर यह जिस तरह की राजनीति चल रही है, वह मुझे नहीं आती। मैं तो छोड़ना चाहता हूं मगर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती। मैं फिर विरोधी दल का नेता हुआ। आज प्रधानमंत्री हूं आैर थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री भी नहीं रहूंगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद मेरा हृदय आनंद से छलकने लगा हो, एेसा नहीं हुआ। जब मैं सबकुछ छोड़छाड़ कर चला जाऊंगा, तब भी मेरे मन में किसी तरह की मलिनता होगी, एेसा होने वाला नहीं है।’

– 28 मर्इ, 1996 को लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव की चर्चा के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के वक्तव्य का अंश

‘ये सदन चर्चा के लिए है, शांतिपूर्ण चर्चा के लिए, संयमित चर्चा के लिए, तर्कपूर्ण चर्चा के लिए। कुछ मित्रों का प्रयत्न था कि कोर्इ चर्चा न हो, तत्काल वोट ले लिया जाए आैर वो यहां से निकलते ही कुर्सी पर जाकर बैठ जाएं। उधर से आवाज आ रही है कि एेसा ही होगा।’

हर कठिन परिस्थिति में से भारत का लोकतंत्र बलशाली होकर निकला है

पार्लियामेंट में मैंने 40 साल गुजारे हैं। एेसे क्षण बार-बार आए हैं। सरकारें बनी हैं, बदली हैं। नर्इ सरकारों का गठन हुआ है। लेकिन हर कठिन परिस्थिति में से भारत का लोकतंत्र बलशाली होकर निकला है आैर मुझे विश्वास है कि इस परीक्षा में से भी बलशाली होकर निकलेगा।

मैंने 40 साल आलोचना की है आज भी मुझे आलोचना सुननी पड़ी है

मैंने 40 साल आलोचना की है। आज भी अधिकांश मुझे आलोचना सुननी पड़ी है। निंदा करने वाले को पास में रखना चाहिए, चापलूस नहीं तो बिगाड़ देंगे अगर निंदक रहेगा तो बिना साबुन आैर पानी के सफार्इ करता रहेगा।
मैं नहीं जानता कि ‘काऊ बेल्ट’ कहां है?

मैं नहीं जानता कि ‘काऊ बेल्ट’ कहां है? ‘काऊ बेल्ट’ जिसे कहा जाता है उसको इस तरह से सदन में उल्लिखित करना। किस क्षेत्र की आप बात कर रहे हैं। हम हरियाणा में जीते हैं, हमने कर्नाटक में समर्थन प्राप्त किया है। आैर यह ठीक है कि केरल में आैर तमिलनाडु में उतने शक्तिशाली नहीं हैं मगर हमारा संगठन है। पश्चिम बंगाल में भी हमें 10 प्रतिशत से थोड़ा कम वोट मिला है।

चलो एकला अपने चुनाव क्षेत्र से आैर दिल्ली में आकर हो जाआे इकट्ठे रे, इस सदन में एक-एक व्यक्ति की पार्टी है आैर वे हमारे खिलाफ जमघट करके हमें हटाने का प्रयास कर रहे हैं। एक व्यक्ति की पार्टी एकला चलो रे आैर चलो एकला अपने चुनाव क्षेत्र से आैर दिल्ली में आकर हो जाआे इकट्ठे रे। किसलिए इकट्ठे हो जाआे, देश के भले के लिए, स्वागत है।

ये कोर्इ आकस्मिक जनादेश नहीं है, चमत्कार नहीं है, 40 साल की साधना है, हम भी अपने ढंग से देश की सेवा कर रहे हैं आैर हम देशभक्त न होते आैर अगर हम निस्वार्थ भाव से राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयास न करते आैर हमारे इस प्रयास के पीछे 40 साल की साधना है। ये कोर्इ आकस्मिक जनादेश नहीं है, यह कोर्इ चमत्कार नहीं है।

आजादी के समय नेहरू जी को विरासत में पार्टी ,सत्ता , नाम , पहचान सब मिला था, कितुं अटल जी और उनकी पार्टी के पास न नाम था ना पार्टी , न ही कोई धन , था यो सिर्फ सपने और उनको पूरा करने का संकल्प। आजादी से एक रात पूर्व भारतीय संसद में दिया गया, जवाहरलाल नेहरू का प्रधानमंत्री के तौर पर दिया गया पहला भाषण वाकई बीसवीं सदी के ऐतिहासिक व यादगार भाषणों में से एक है ।

एहसास कीजिए क्या माहौल होगा उस रात जब हजारों वर्षो की गुलामी के बाद भारत आक्रांताओ व विदेशियों के मुट्ठी से निकल कर एक आजाद चिड़िया की तरह खुले आसमान में उड़ने के लिए तैयार था।

दोनो भाषणों में मूल अंतर यह था कि देश की आजादी के बाद नेहरू ने लालकिला से अंग्रेजी में भाषण दिया यह कैसे हो सकता जब एक देश सदियों की गुलामी के बाद आजाद हुआ तब भी वह अपनी भाषा मे पहला भाषण ना दे पाया।

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