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गणित की खोज किसने की और पहला गणितज्ञ कौन था?

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ध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है।

आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)({3}इजिप्ट का गणित {/3}सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है।

बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया।

इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ।

प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए. जिससे नए वैज्ञानिक खोजों के साथ अंतर क्रियाएँ हुईं, यह सब अब तक की सबसे तीव्र गति के साथ हुआ (ever increasing pace) और यह आज तक जारी है।

मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव

देश मे मैथेमेटिक्स गुरू के नाम से मशहूर बिहार के चर्चित मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव ने गणित की उत्पत्ति से लेकर शून्य का आविष्कार , पाई का मान, कलन शास्त्र, त्रिकोणमिती आदि बिषयो के इतिहास की जानकारी देने का प्रयास जन जन तक कर रहे है. आज के बच्चे सिर्फ आधा अधूरी जानकारी के साथ डिग्री तो अच्छे अंक के साथ प्राप्त कर ले रहे है. परंतु जो बिषय उनका शुरू से ही पसंदीदा रहता है उसके सिर्फ प्रश्न हल करके तो वे काफी खुश हो जाते है. लेकिन उस बिषय के उन तथ्यों की बिल्कुल जानकारी आज की पीढ़ी जानना पसंद नही करती जो उनके भविष्य के लिए फायदेमंद हो. आज मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव विश्व सहित भारत के वैसे गणितज्ञो तथा उनके द्वारा गणित मे दिये गये योगदान के बारे मे जानकारी दे रहे है. जिनके बिना गणित की कल्पना करना असंभव है.

गणित की उत्पत्ति 

यह आज इतिहास के पन्नो मे विस्मृत है.मगर हमे मालूम है कि आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताए गणित का इस्तेमाल पंचांग ( कैलेंडर ) बनाने के लिए किया करती थी .जिससे उन्हे पूर्व जानकारी रहती थी की कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी मे बाढ़ आएगी या फिर इसका प्रयोग वर्ग समीकरणो को हल करने के लिए किया करती थी .उन्हे उस theorem तक के बारे मे जानकारी थी जिसका की गलत श्रेय पाइथागोरस को दिया जाता है.उनकी संस्कृति कृषि पर आधारित थी और उन्हे सितारोंऔर ग्रहो के पथो के शुद्ध आलेख और सर्वेक्षण के लिए सही तरीको के ज्ञान की जरूरत थी.अंकगणित का प्रयोग व्यापार मे रूपयो-पैसो और वस्तुओ के विनिमय या हिसाब -किताबे रखने के लिए किया जाता था. geometry का इस्तेमाल खेतों के चारो तरफ की सीमाओ के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारको के निर्माण मे होता था.

मिलेटस निवासी thales को ही सबसे पहला सैद्धांतिक गणितज्ञ माना जाता है .उन्होंने बताया की किसी भी बस्तु की ऊँचाई को मापन छड़ी द्वारा निक्षेपित परछाई से तुलना करके माने जा सकता है . ऐसा माना जाता है कि उन्होंने एक सूर्य ग्रहण के होने के बारे मे भी भविष्यवाणी की थी. उनके शिष्य पाइथागोरस ने ज्यामिती को यूनानियो के बीच एक मान्य science का स्वरूप दिलाकर Euclid और Archiimidhiz के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त किया. बेबीलोन निवासियो के विरासत मे मिले ज्ञान मे यूनानियो ने काफी वृद्धि की . इसके अलावा गणित को एक तर्कसंगत पद्धति के रूप मे उन्होंने स्थापित किया .एक जैसी पद्धति जिससे कुछ मूल facts या धारणाओ को सत्य मानकर निष्कर्षों तक पहुॅचा जाता है theorem कहलाता है. इंडिया के लिए गौरव की बात है की बारहवी सदी तक गणित का सम्पूर्ण विकास यात्रा मे उसके उन्नयन के लिए किए गए सारे Important प्रयास अधिकांशतः Indians Mathematicians की खोजो पर ही आधारित थे.

शून्य का आविष्कार

zero का अविष्कार किसने और कब किया यह आज तक अंधकार के गर्त मे छुपा हुआ है परन्तु सम्पूर्ण विश्व मे यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि zero का अविष्कार भारत मे हुआ है .ऐसी भी कथाएँ प्रचलित है कि पहली बार zero का अविष्कार बाबिल मे हुआ और दूसरी बार माया सभ्यता के लोगों ने इसका अविष्कार किया. और दोनों ही बार के अविष्कार number system को प्रभावित करने में असमर्थ रहे तथा विश्व के लोगों ने इन्हें भुला दिया .

फिर भारत में हिन्दुओ ने तीसरी बार zero का अविष्कार किया.हिन्दुओ ने zero का अविष्कार कैसे किया यह आज भी अनुतरित प्रश्न हैं. सर्वनन्दि नामक दिगम्बर जैन मुनी द्वारा मुल्य रूप से प्रकृत में रचित लोकविभाग नामक ग्रंथ में zero का उल्लेख सबसे पहले मिलता है.इस ग्रंथ में decimal number का भी उल्लेख है.

सन् 498 में भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलवेता आर्यभट्रट ने कहा ten से गुणा करने के लिए उसके आगे zero रखो और शायद यही संख्या के decimal theory का उद्गम रहा होगा.आर्यभट्रट द्वारा रचित गणितिय खगोल शास्त्र ग्रंथ आर्यभट्टिय के number system मे zero तथा उसके लिए विशिष्ट संकेत सम्मिलित था .इसी कारण से उन्हे numbers को शब्दो मे प्रदर्शित करने का अवसर मिला. उपरोक्त उदाहरण हे स्पष्ट है कि भारत मे zero का प्रयोग ब्रह्मागुप्त के काल से पूर्व के काल मे होता था. भारत मे हिन्दूओ के द्वारा अविष्कृत zero ने समस्त विश्व के number system को प्रभावित किया .

Zero की खोज

zero की महान खोज ने आर्यभट्रट का नाम इतिहास में अमर कर दिया .जिसके बिना गणित की कल्पना करना भी मुश्किल है.आर्यभट्रट ने ही सबसे पहले स्थानीय मान पद्धति की व्याख्या की. उन्होंने ही सबसे पहले उदाहरण के साथ बताया की हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूरज की परिक्रमा करती है . और चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है .उनका मानना था कि सभी ग्रहों की कक्षा दीर्घवृताकार है.उन्होंने बताया की चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य का ही reflection है .

आर्यभट्रट ने बताया की नाव मे बैठा हुआ person जल प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है तब वह समझता है की वृक्ष , पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे है . उसी प्रकार गतिमान पृथ्वी पर से स्थिर नक्षत्र भी उल्टी गति से जाते हुए दिखाई देते है .इस प्रकार आर्यभट्रट ने सर्वप्रथम यह prove किया की earth अपने axis पर घूमती है. आर्यभट्रट एक महान इंसान थे जिन्हे गणित मे समुंदर जैसी गहराई जितने अध्ययन और विश्लेषण के बाद नयी दुनिया को जन्म दिया.

पहला गणितज्ञ कौन था?

सबसे पहले गणितज्ञ का नाम तो पता नही, आज से 4000 साल पहले जब Ahmes ने अपने papyrus (मिस्त्र मे घास से बनाया जाने वाला कागज) मे गणित के कुछ नियमो का उल्लेख किया वो भी उसने पुराने उपलब्ध लेखों से किया। पर अपने papyrus मे उसने केवल अपने नाम का उल्लेख किया है। बेबीलोन के निवासियों को भी प्राचीन काल से गणित का ज्ञान था। अगर हम गणित के विकास को समय के अनुसार उल्लेखित करने का प्रयास करें तो हम पाएंगे कि इसका उद्भव तब हुआ जब भाषा का विकास हो रहा था या उससे भी पहले हजारों वर्षों पूर्व।

मिलेटस निवासी थेल्स को ही सबसे पहला गणितज्ञ माना जाता है। थेल्स यूनान का महान दार्शनिक थे। उसने बताया कि किसी भी वस्तु की ऊंँचाई को मापना छड़ी द्वारा निक्षेपित परछाई से तुलना करके मापा जा सकता है। इन्होंने गणितीय भूगोल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उसके शिष्य पाइथागोरस ने ज्यामिति को यूनानियों के बीच एक मान्य विज्ञान का स्वरूप दिलाकर यूक्लिड और आर्किमिडीज के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त किया।

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