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क्यों लोकसभा में 420 नंबर की सीट नहीं होती?

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अक्सर यह देखा गया है कि लोगों में किसी न किसी नंबर को अशुभ मानते आये है, इसके पीछे कहीं धार्मिक कारण होते हैं तो कहीं कुछ अन्य कारण लेकिन,यह तो तय है कि नंबरों के शुभ या अशुभ का खेल अधिकांश देशों में चलता है। इस कम्प्यूटीकृत जमाने में इंसान की पहचान ही नंबरों से होती है। आज के समय में किसी भी संगठन,समुदाय व कार्य-स्थल यहां तक कि सरकारी दस्तावेजों में भी एक विशेष नंबर आपकी पहचान होते हैं,आपके नाम,पता व पिताजी के नाम से कहीं ज्यादा।

इसी तरह का एक नंबर है 420 जिसको भारत में बहुत घृणित समझा जाता है। दरअसल बात यह है कि भारत मे भारतीय दंड संहिता में जालसाजी व धोखाधड़ी करने वाले लोगों के खिलाफ धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इसलिए भारत में 420 नंबर को धोखेबाजी वह जालसाजी का प्रतीक माना जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो भारत में किसी व्यक्ति को 420 कहने का मतलब है कि धोखेबाज,फर्जी व जालसाज।

यह तो हुई कहानी 420 नंबर कि अब बात करते हैं कि लोकसभा में 420 नंबर की सीट क्यों नहीं है-

14वीं लोकसभा में एक सदस्य को 420 नंबर की सीट निर्धारित की गई थी जिसको उस सदस्य ने स्वयं के प्रति अपमान समझा और उसे निरस्त करवाने हेतु लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष आपत्ति दर्ज करवाई। इस मामले के बाद लोकसभा ने सीट नंबर 420 को निरस्त करते हुए सीट नंबर 420 की जगह 419 से सीधे 419-ए बनाई। जिसका सर्वप्रथम आवंटन पंद्रहवीं लोकसभा में डेमोक्रेटिक फ्रंट के सांसद बदरुद्दीन अजमल को किया गया।

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